Saturday, December 15, 2007

खिलता हुआ गुलाब.


खिलता हुआ गुलाब.........

आज हमने देखा है खिलता हुआ माहताब।
चेहरा उसका रौशन इतना जैसे के हो गुलाब।।
ऐसा सुना ना देखा हमने हुश्न बेहिसाब।
आज हमने देखा है खिलता हुआ माहताब।।

ज़ुल्फ़ों की बदलियां थीं के, महका हुआ शमां।
पलकों के नीचे उसके, मयकश का था जहॉ।।
वो हुश्न था 'राकेश' या आँखों का तेरे ख्वाब।
आज हमने देखा है खिलता हुआ माहताब।।

क्या चाल थी वो तौबा, मुमताज याद आए।
नूरे नज़र की खातिर, सौ चांद हम बनाएं।।
फिर इक झलक दिखा दे, हो के तू बेनक़ाब।
आज हमने देखा है खिलता हुआ माहताब।।