
तुम ही मेरा दिल, तुम हो जाने जिगर, तुम्हे देखती है यूं ही मेरी नज़र
मगर क्या करू, तुम से कह न सकूं, के तुम्ही हो तुम्ही हो मेरी हमसफर
पलकों में मेरी झांक कर देख लो, के जरूरत न होगी आईने की तुम्हें
मेरी आंखें बनी आईना तेरे लिए और तुम बन गयी मेरी नूरे नज़र
क्या फलक क्या ज़मीं, है कहीं कुछ नहीं, जो भी है वो हो तुम,
है तु ही मेरी शब, है तु ही सुबह, हो मेरी बन्दगी, अल्लाह अकबर।
तुम्हे क्या पता, क्या हो मेरे लिए, जो बताई न जाए वो एहसास हो।
तेरी बातों पर हंसता हूं, दूर जा के रोता हूं, सोचता हूं तुम्हे दिन भर, रात भर।
तुम से बातें करू, जबकि तुम हो नहीं, मेरे साये में देखू, तेरा अक्स मैं।
कौन कहता है कि तुम हो मेरी नहीं, एक मैं हूं कि तुम से ये कहता नहीं।
तुम ही मेरा दिल, तुम हो जाने जिगर, तुम्हे देखती है यूं ही मेरी नज़र।।