Thursday, January 27, 2011

स्वतंत्र भारत का सच

कहने को स्वतंत्र है भारत है किन्तु, अब भी गुलाम है.
शासक का चेहरा बदला है, शासन का स्वरूप नहीं

विदेशियों ने लूटा भारत, अब स्वदेशी लूट रहे
भेड़ चाल पर चलने वाले, एक डगर पर निकल पड़े
वे भी धन विदेश भेजते, ये भी स्विस बैंक भेज रहे

बहू-बेटियां तब भी नंगी आज भी नंगी घूम रहीं
खाने को रोटी नहीं मिलती, तन की फिक्र वो कैसे करे
शासन की नज़रें हैं औंधी, जनता की फिर कौन सुने

कृषि मंत्री कृषि न जाने, खेल मंत्री खेल नहीं
वित्त मंत्री वित्त बटोरें, जनता का है खौफ नहीं
जनतंत्र की भयभीत जनता, मुंह से कुछ न बोल सके

एक थी महरानी लक्ष्मीबाई जो देश पर कुर्बान हुईं
अब हैं माया, ममता, शीला, ललिता की भी शान बड़ी
देश भले ही भूखा सोये, इनकी सजती रंगरेली

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