
उस चांद को देखा ऐसा लगा
वो चांद नहीं तेरा साया था
कहना जो चाहा चांद उसे
मैंने नाम तेरा ही पुकारा था।
रफ्ता- रफ्ता हौले-हौले
अम्बर के आंगन में चलता था
जब चांद का पल्लू ढ़लता था
शमार्ना तेरा याद आता था।
जब हाथ बढ़ाया चांद ने तो
दिल मेरा भी कुछ मचला था
मैं चला पकड़ने चांद को तो,
हाथों में तेरा हाथ आया था।
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