Thursday, July 29, 2010

सुन लो प्रियतम गीत हमारा

सुन बसंती पवन बयारों
उछृंखल हे नदी की धारों
कौतुकता बालकपन त्यागो
नव वल्लरियां तुम्हें पुकारे
राग सारंग तुम छेड़ दो मन में
रति देव का टेर सुनाओ

लाज की चुनरी ओढ़े कलियां
पलक बिछाये गलियां-गलियां
ढूंढ रही हैं शर से घायल
कामदेव की गहरी अंखियां
सहज से तुमसे मदन के प्यारे
प्रियतम से तुम हमें मिलाओ
घड़ी है कम इस प्रिय मिलन की
जाओ-जाओ पर बिखराओ

पिया मिलन की आश लगाये
कुहू-कुहू बोले कोयलिया
तू अपनी निष्ठुरता तज दे
शाकुन्तल दुष्यंत मिला दे
विरह वेदना हृदय को चीरे
सांस&सांस में जीवन बीते
जीवन की एक साध पूरा दे
बासंती रंग युगल नहा दे
तेरे लिए काम नहीं भारी
रति सचि सब तेरे पुजारी
तू मेरे प्रिय इन्द्र मिला दे
गति जरा अपनी दिखला दे

मादक-मादक खुशबू फैला
महक रहा है ये जग सारा
ऋतु बसंत की एक छुअन से
बहक रहा है मन ये मेरा
अलसाई सी अंगराई है
बलखाई सी अमराई है
शर्म, लाज को तज कर कलियां
फूल सी बनकर लहराई है
ऐसे में गूंजा पंचम स्वर
देखो किसने किसे पुकारा

तरकश ले कर मदन चले हैं
पत्थर से भी रस छलके हैं
हृदय हुआ है प्रेम पिपासु
प्रियतम को हम ढूंढ रहे हैं
गीत हैं मेरे प्रेम से सिंचित
सुन लो प्रियतम गीत हमारा

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